रात के आँचल से
जो रात के आँचल से निकल के
दबे पाँव उतरा था
मेरे मन के आँगन में
और ठहर गया दो पल को
मेरी अधमुंदी पलकों पे।
दबे पाँव उतरा था
मेरे मन के आँगन में
और ठहर गया दो पल को
मेरी अधमुंदी पलकों पे।
ख़्वाब की ताबीर
(एक मज़दूर की ज़ुबानी)
किसी सयाने** ने कहा
के ख़्वाब वो नहीं
जो देखते तुम नींद में
ख़्वाब तो वो है
जो तुम्हें सोने ही ना दे।
किसी सयाने** ने कहा
के ख़्वाब वो नहीं
जो देखते तुम नींद में
ख़्वाब तो वो है
जो तुम्हें सोने ही ना दे।
मेरे चंद अशआर - 2
कभी कभी दिल मेरा
मुझसे पूछता है दफ़अतन
किसकी फ़िराक़ में खड़े
किसके मुंतज़िर हो तुम
इस रहगुज़र से आज तक
हो कर नहीं गुज़रा कोई!
*दफ़अतन = अचानक (Suddenly)
*फ़िराक़ = खोज (Search)
*मुंतज़िर = प्रतीक्षा करने वाला (Expectant, One who waits)
मुझसे पूछता है दफ़अतन
किसकी फ़िराक़ में खड़े
किसके मुंतज़िर हो तुम
इस रहगुज़र से आज तक
हो कर नहीं गुज़रा कोई!
*दफ़अतन = अचानक (Suddenly)
*फ़िराक़ = खोज (Search)
*मुंतज़िर = प्रतीक्षा करने वाला (Expectant, One who waits)
यादों की मिट्टी
क्यूं ज़ुबां ठिठक जाती है मेरी रू-ब-रू उनके मुझे क्या मालूम
कितना कुछ कहने को है मेरे दिल में उन्हें क्या मालूम!
कितना कुछ कहने को है मेरे दिल में उन्हें क्या मालूम!
ख़्वाब की रहगुज़र
शब-ए-ख़ामोश में
नींद के आग़ोश में
डूबा था मैं जब बेख़बर
मेरे ख़्वाब की रहगुज़र
से कोई हो कर गुज़रा
दबे पॉंव छू कर मुझे
क्या वो तुम थे...?
नींद के आग़ोश में
डूबा था मैं जब बेख़बर
मेरे ख़्वाब की रहगुज़र
से कोई हो कर गुज़रा
दबे पॉंव छू कर मुझे
क्या वो तुम थे...?
माँ का आँचल
कितना सुकूं है
माँ के मुलायम आँचल में
जिसमें सिमट कर
हर बच्चे की आँखों में
एक नूर चमकने लगता है
और होठों पे एक मीठी सी
मुस्कान थिरकने लगती है!
© गगन दीप
माँ के मुलायम आँचल में
जिसमें सिमट कर
हर बच्चे की आँखों में
एक नूर चमकने लगता है
और होठों पे एक मीठी सी
मुस्कान थिरकने लगती है!
© गगन दीप
ख़्वाहिशों का अमल
नग़मा कभी तुम नज़्म कभी हो, कभी रुबाई कभी ग़ज़ल
संगीत सुनाई दे फ़िज़ा में, लहराए जब तेरा आँचल!
संगीत सुनाई दे फ़िज़ा में, लहराए जब तेरा आँचल!
मुस्कान
(एक मित्र की बिटिया की स्मृति को समर्पित)
देखा नहीं जिसको हमने
नज़रों से कभी
जाने कब, कैसे वो
प्यारी सी ‘मुस्कान’...
देखा नहीं जिसको हमने
नज़रों से कभी
जाने कब, कैसे वो
प्यारी सी ‘मुस्कान’...
तुम
तुम औरों की सब सुनती हो
फिर उनका मर्म समझ कर
जीने का अंदाज़
उन्हें सिखलाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने दिल की बात
किसे बतलाती हो।
फिर उनका मर्म समझ कर
जीने का अंदाज़
उन्हें सिखलाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने दिल की बात
किसे बतलाती हो।
सिंदूरी धूप
मेरे हिस्से की धूप को
मांग में तुम अपनी रख लो
कुछ रंग सिंदूरी हो जाए
फिर लौटा देना मुझको
मैं ओढ़ लूंगा तब इसको
अपनी रातों के साए पर।
मांग में तुम अपनी रख लो
कुछ रंग सिंदूरी हो जाए
फिर लौटा देना मुझको
मैं ओढ़ लूंगा तब इसको
अपनी रातों के साए पर।
मेरे चंद अशआर - 1
ख़यालों के झुरमुट में, एक शक्ल फिर उभर आई,
देखा जो मैंने दूर तक, उफ़क़ पे वो नज़र आई!
डूब कर देखा, जो उसकी नीम-बाज़ आँखों में,
कोई खो गया नशे में, किसी को ज़िंदगी नज़र आई!
देखा जो मैंने दूर तक, उफ़क़ पे वो नज़र आई!
डूब कर देखा, जो उसकी नीम-बाज़ आँखों में,
कोई खो गया नशे में, किसी को ज़िंदगी नज़र आई!
बचपन
कभी तो हमसे आ के मिल
ऐ ज़िंदगी
अपनी पुरानी शक्ल
और उस अंदाज़ में
जो छूट गया उस मोड़ पर
जहां बचपन था
मासूम सा अल्हड़पन था
वहां पानी का मटमैला सा
एक टूटा-फूटा जोहड़ था
और उम्मीदों से भरी हुई
काग़ज़ की नावें चलती थीं!
ऐ ज़िंदगी
अपनी पुरानी शक्ल
और उस अंदाज़ में
जो छूट गया उस मोड़ पर
जहां बचपन था
मासूम सा अल्हड़पन था
वहां पानी का मटमैला सा
एक टूटा-फूटा जोहड़ था
और उम्मीदों से भरी हुई
काग़ज़ की नावें चलती थीं!
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