अनुगूँज
गगन दीप की कविताएं, नज़्में और अशआर
Anugoonj: Poems, Nazms and Verses by Gagan Deep
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तुम
तुम औरों की सब सुनती हो
फिर उनका मर्म समझ कर
जीने का अंदाज़
उन्हें सिखलाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने दिल की बात
किसे बतलाती हो।
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ज़िंदगी
सोचा था आसमां को
तराशेंगे हम कभी...
एक मुश्त आसमां को भी
तरसा दिया हमें।
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रेशा रेशा ख़्वाब
ख्व़ाहिश थी तुमसे रू-ब-रू दो बात कर सकूँ
मुझसे तो जब मिले तुम एक भीड़ में मिले।
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सिंदूरी धूप
मेरे हिस्से की धूप को
मांग में तुम अपनी रख लो
कुछ रंग सिंदूरी हो जाए
फिर लौटा देना मुझको
मैं ओढ़ लूंगा तब इसको
अपनी रातों के साए पर।
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गीत
गीत जो बोया बरसों पहले
अधरों पर वो आज खिला है।
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मेरे चंद अशआर - 1
ख़यालों के झुरमुट में, एक शक्ल फिर उभर आई,
देखा जो मैंने दूर तक, उफ़क़ पे वो नज़र आई!
डूब कर देखा, जो उसकी नीम-बाज़ आँखों में,
कोई खो गया नशे में, किसी को ज़िंदगी नज़र आई!
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बचपन
कभी तो हमसे आ के मिल
ऐ ज़िंदगी
अपनी पुरानी शक्ल
और उस अंदाज़ में
जो छूट गया उस मोड़ पर
जहां बचपन था
मासूम सा अल्हड़पन था
वहां पानी का मटमैला सा
एक टूटा-फूटा जोहड़ था
और उम्मीदों से भरी हुई
काग़ज़ की नावें चलती थीं!
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आवाज़
सुनो ग़ौर से तुम अगर
तो हर ख़ामोशी
हरेक सन्नाटे की
आवाज़ होती है...
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एक पल
वो एक पल अकेला
जो संग हमारे चल रहा
वही एक पल अपना है
उसके सिवा कुछ भी नहीं!
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मेरी पहचान
तय किए थे जिन पर
उम्र के मरहले कई
ग़र्द उन्हीं राहों की
जम गई है माज़ी के
पीले पड़े दरीचों पे!
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