(एक मज़दूर की ज़ुबानी)
किसी सयाने** ने कहा
के ख़्वाब वो नहीं
जो देखते तुम नींद में
ख़्वाब तो वो है
जो तुम्हें सोने ही ना दे।
बेखुदी में कभी-कभी
एक ख़्वाब देखता हूँ मैं -
यूं ही किसी शाम को
मैं अपने फ़रज़ंद
अपने जिगर के टुकड़े को
बाग़ में ले कर जाता हूँ
और फिर खेलता हूँ
साथ उसके जी भर के
वापसी बाज़ार से
ढेर सारी टॉफ़ीयां
आइस-क्रीम और खिलौने
उसे दिला कर लाता हूँ मैं।
नंगे पांव फिरता है दिन भर
कंकड़ी चुभती है उसके
नन्हें-नन्हें पैरों में अक्सर
एक रोज़ नए जूते-चप्पल
बाज़ार से उसके लिए
खरीद कर लाता हूँ मैं;
फट चुके हैं कपड़े उसके
बदन पे घिस-घिस कर
दिवाली के मौके पर
इस बार तो उसके लिए
एक नया जोड़ा कपड़ों का
सिलवा कर लाता हूँ मैं।
देखता हूँ बच्चों को
जब स्कूल मैं जाते हुए
हूक सी उठती है मन में
और चुभती है शूल सी
चलो इस दफ़ा स्कूल में
उसका भी नाम
लिखवा कर आता हूं मैं।
जानता हूँ मेरे इस
बेमानी से ख़्वाब की
ताबीर नहीं कोई
मगर मेरा ये ख़्वाब मुझे
सोने नहीं देता
पर क्या करूं मजबूरी है
सोऊंगा नहीं अगर
तो कल सुबह
मैं काम पर जाऊंगा कैसे
बारिश का मौसम है सर पे
झुग्गी की छत टपक रही है
उसकी नई तिरपाल के लिए
नून-तेल, आटे-दाल के लिए
मैं कमाऊंगा कैसे
फिर सोचता हूँ ऐसे ख़्वाब
मेरे भला किस काम के
जो चैन से सोने भी ना दें,
इस सोच में डूबे हुए
जाने किस पल
आँख लग जाती है मेरी।
नींद खुली एक रोज़ सुबह
तो मैंने देखा
एक पुरानी ट्राई-साईकिल
जिसे उठा कर लाया था
मेरा नन्हा सा फ़रिश्ता
फेंके हुए कबाड़ से कल शाम को
बिठा के उस ट्राई-साईकिल पर
वो अपनी छोटी बहना को
घुमा रहा है मस्ती में
और बड़ी मासूमियत से
खिलखिला रहा है
मानो मेरे ख़्वाब को
वो ठेंगा दिखा रहा है।
उन दोनों की खिलखिलाहट
गूँज रही थी मेरे कानों में
और मैं अपने ख़्वाब को
पोटली में बांध कर
बासी रोटियों के संग
चल दिया औज़ार उठा कर
फिर से अपने काम पर
एक नए मकान की
तामीर करने के लिए
कल ही सुना था मैंने
उस मकां के मालिक को
किसी से ये कहते हुए -
“ये मकां नहीं, भाई
ये तो मेरे सबसे हसीं
ख़्वाब की ताबीर है!”
*ताबीर = ख़्वाब का नतीजा, स्वप्नफल (Interpretation of Dream)
*फ़रज़ंद = पुत्र, बेटा (Child)
*बेमानी = अर्थहीन (Meaningless)
*तामीर = निर्माण (Construction)
© गगन दीप
**पूर्व राष्ट्रपति श्रद्धेय श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का अंग्रेज़ी भाषा में एक प्रेरणादायक उद्धरण (quotation) है:
किसी सयाने** ने कहा
के ख़्वाब वो नहीं
जो देखते तुम नींद में
ख़्वाब तो वो है
जो तुम्हें सोने ही ना दे।
बेखुदी में कभी-कभी
एक ख़्वाब देखता हूँ मैं -
यूं ही किसी शाम को
मैं अपने फ़रज़ंद
अपने जिगर के टुकड़े को
बाग़ में ले कर जाता हूँ
और फिर खेलता हूँ
साथ उसके जी भर के
वापसी बाज़ार से
ढेर सारी टॉफ़ीयां
आइस-क्रीम और खिलौने
उसे दिला कर लाता हूँ मैं।
नंगे पांव फिरता है दिन भर
कंकड़ी चुभती है उसके
नन्हें-नन्हें पैरों में अक्सर
एक रोज़ नए जूते-चप्पल
बाज़ार से उसके लिए
खरीद कर लाता हूँ मैं;
फट चुके हैं कपड़े उसके
बदन पे घिस-घिस कर
दिवाली के मौके पर
इस बार तो उसके लिए
एक नया जोड़ा कपड़ों का
सिलवा कर लाता हूँ मैं।
देखता हूँ बच्चों को
जब स्कूल मैं जाते हुए
हूक सी उठती है मन में
और चुभती है शूल सी
चलो इस दफ़ा स्कूल में
उसका भी नाम
लिखवा कर आता हूं मैं।
जानता हूँ मेरे इस
बेमानी से ख़्वाब की
ताबीर नहीं कोई
मगर मेरा ये ख़्वाब मुझे
सोने नहीं देता
पर क्या करूं मजबूरी है
सोऊंगा नहीं अगर
तो कल सुबह
मैं काम पर जाऊंगा कैसे
बारिश का मौसम है सर पे
झुग्गी की छत टपक रही है
उसकी नई तिरपाल के लिए
नून-तेल, आटे-दाल के लिए
मैं कमाऊंगा कैसे
फिर सोचता हूँ ऐसे ख़्वाब
मेरे भला किस काम के
जो चैन से सोने भी ना दें,
इस सोच में डूबे हुए
जाने किस पल
आँख लग जाती है मेरी।
नींद खुली एक रोज़ सुबह
तो मैंने देखा
एक पुरानी ट्राई-साईकिल
जिसे उठा कर लाया था
मेरा नन्हा सा फ़रिश्ता
फेंके हुए कबाड़ से कल शाम को
बिठा के उस ट्राई-साईकिल पर
वो अपनी छोटी बहना को
घुमा रहा है मस्ती में
और बड़ी मासूमियत से
खिलखिला रहा है
मानो मेरे ख़्वाब को
वो ठेंगा दिखा रहा है।
उन दोनों की खिलखिलाहट
गूँज रही थी मेरे कानों में
और मैं अपने ख़्वाब को
पोटली में बांध कर
बासी रोटियों के संग
चल दिया औज़ार उठा कर
फिर से अपने काम पर
एक नए मकान की
तामीर करने के लिए
कल ही सुना था मैंने
उस मकां के मालिक को
किसी से ये कहते हुए -
“ये मकां नहीं, भाई
ये तो मेरे सबसे हसीं
ख़्वाब की ताबीर है!”
*ताबीर = ख़्वाब का नतीजा, स्वप्नफल (Interpretation of Dream)
*फ़रज़ंद = पुत्र, बेटा (Child)
*बेमानी = अर्थहीन (Meaningless)
*तामीर = निर्माण (Construction)
© गगन दीप
**पूर्व राष्ट्रपति श्रद्धेय श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का अंग्रेज़ी भाषा में एक प्रेरणादायक उद्धरण (quotation) है:
A dream is not what you see in sleep, but it is that which doesn't let you sleep!
उसी उद्धरण के प्रति एक यथार्थवादी श्रद्धांजलि है, एक ग़रीब मज़दूर के नज़रिए से लिखी, यह काव्य-रचना।