मेरे चंद अशआर - 2

कभी कभी दिल मेरा
मुझसे पूछता है दफ़अतन
किसकी फ़िराक़ में खड़े
किसके मुंतज़िर हो तुम
इस रहगुज़र से आज तक
हो कर नहीं गुज़रा कोई!

*दफ़अतन = अचानक (Suddenly)
*फ़िराक़ = खोज (Search)
*मुंतज़िर = प्रतीक्षा करने वाला (Expectant, One who waits)

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कितनी दफ़ा आवाज़ दी
कितनी दफ़ा उसको पुकारा।

गुज़र गया जो बरसों पहले
मुड़ के ना लौटा दोबारा।

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अरसे लगे हमें खुद को भूल जाने में
क़िस्सा नहीं ये है कोई कल-परसों का।

ज़िंदगी हमने गुज़ारी करके लम्हा-लम्हा
अब मांगती है ये हिसाब हमसे बरसों का।

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ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
हमें इंतज़ार का कुछ तो सिला मिला।

बस एक शिकायत है के उनके
संग बिताने को वक़्त बेहद कम मिला।

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उलफ़त न सही मतलब ही सही
चलो किसी न किसी बहाने
याद तो करते हैं मुझको
मुझसे आंख चुराने वाले।

कुछ इस कदर गुज़रे हैं मुझ पे
हादिसे मुहब्बत में
के अब डराते हैं मुझको
तपाक से हाथ मिलाने वाले।

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मुद्दत हुई देखा नहीं तुझको हमने
मुंतज़िर हैं कब से हम तेरे दीदार के।

रोशन रहें चराग़ तेरे अब्सार के सदा
बस मांगते हैं ये दुआ परवरदिगार से।

*अब्सार = आंखें (Eyes)

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तोड़ दे अब तो ख़ुदाया तू भरम मेरा
उसकी फ़िराक़ में यूंही कब तक खड़ा रहूं मैं।

ख़त्म हो चुके रास्ते पर सफ़र अभी तक बाक़ी है
मंज़िल की आस में यूंही कब तक खड़ा रहूं मैं।

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तोड़ दे अब तो ख़ुदाया तू भरम उसका
ख़ुद की फ़िराक़ में कोई कब तक खड़ा रहे।

ख़त्म हो चुके रास्ते पर सफ़र अभी तक बाक़ी है
मंज़िल की आस में कोई कब तक खड़ा रहे।

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मैंने ऐसा क्या पूछ लिया
कि तुम निशब्द हो गए।

तुम्हारी इस ख़ामोशी से तो
सन्नाटे भी स्तब्ध हो गए।

© गगन दीप