अनुगूँज
गगन दीप की कविताएं, नज़्में और अशआर
Anugoonj: Poems, Nazms and Verses by Gagan Deep
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छलकते जाम
शिकवा नहीं मुझको ना अब कोई शिकायत है
क्योंकि अब किसी से कोई आस नहीं रखता मैं।
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चाँद के उस पार
नक़्श किसी के प्यार के
बिखरे हुए हैं जां-ब-जां
मेरी ज़िंदगी के पन्नों पर।
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रात के आँचल से
जो रात के आँचल से निकल के
दबे पाँव उतरा था
मेरे मन के आँगन में
और ठहर गया दो पल को
मेरी अधमुंदी पलकों पे।
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ख़्वाब की ताबीर
(
एक मज़दूर की ज़ुबानी
)
किसी सयाने** ने कहा
के ख़्वाब वो नहीं
जो देखते तुम नींद में
ख़्वाब तो वो है
जो तुम्हें सोने ही ना दे।
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लाड़ली
मैं झनकार हूँ जीवन की
मैं फुहार हूँ सावन की
मैं चिड़िया वन-उपवन की
मैं कोयल हूँ नंदन-वन की!
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मेरे चंद अशआर - 2
कभी कभी दिल मेरा
मुझसे पूछता है दफ़अतन
किसकी फ़िराक़ में खड़े
किसके मुंतज़िर हो तुम
इस रहगुज़र से आज तक
हो कर नहीं गुज़रा कोई!
*दफ़अतन = अचानक
(Suddenly)
*फ़िराक़ = खोज
(Search)
*मुंतज़िर = प्रतीक्षा करने वाला
(Expectant, One who waits)
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यादों की मिट्टी
क्यूं ज़ुबां ठिठक जाती है मेरी रू-ब-रू उनके मुझे क्या मालूम
कितना कुछ कहने को है मेरे दिल में उन्हें क्या मालूम!
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