छलकते जाम

शिकवा नहीं मुझको ना अब कोई शिकायत है
क्योंकि अब किसी से कोई आस नहीं रखता मैं।

चाँद के उस पार

नक़्श किसी के प्यार के
बिखरे हुए हैं जां-ब-जां
मेरी ज़िंदगी के पन्नों पर।

रात के आँचल से

जो रात के आँचल से निकल के
दबे पाँव उतरा था
मेरे मन के आँगन में
और ठहर गया दो पल को
मेरी अधमुंदी पलकों पे।

ख़्वाब की ताबीर

(एक मज़दूर की ज़ुबानी)

किसी सयाने** ने कहा
के ख़्वाब वो नहीं
जो देखते तुम नींद में
ख़्वाब तो वो है
जो तुम्हें सोने ही ना दे।

लाड़ली

मैं झनकार हूँ जीवन की
मैं फुहार हूँ सावन की
मैं चिड़िया वन-उपवन की
मैं कोयल हूँ नंदन-वन की!

मेरे चंद अशआर - 2

कभी कभी दिल मेरा
मुझसे पूछता है दफ़अतन
किसकी फ़िराक़ में खड़े
किसके मुंतज़िर हो तुम
इस रहगुज़र से आज तक
हो कर नहीं गुज़रा कोई!

*दफ़अतन = अचानक (Suddenly)
*फ़िराक़ = खोज (Search)
*मुंतज़िर = प्रतीक्षा करने वाला (Expectant, One who waits)

यादों की मिट्टी

क्यूं ज़ुबां ठिठक जाती है मेरी रू-ब-रू उनके मुझे क्या मालूम
कितना कुछ कहने को है मेरे दिल में उन्हें क्या मालूम!