ख़्वाब की रहगुज़र

शब-ए-ख़ामोश में
नींद के आग़ोश में
डूबा था मैं जब बेख़बर
मेरे ख़्वाब की रहगुज़र
से कोई हो कर गुज़रा
दबे पॉंव छू कर मुझे
क्या वो तुम थे...?

या फिर था कोई साया
तुम्ही से वाबस्ता
उन अधूरी ख़्वाहिशों का
जो सिमट के रह गयीं
वक़्त के नर्म-ओ-नाज़ुक
चंद गुज़िश्ता लम्हों में
जो साथ गुज़रे थे तुम्हारे!

*शब-ए-ख़ामोश = रात की ख़ामोशी (Silence of the night)
*वाबस्ता = संबंधित (Related, Connected)
*गुज़िश्ता = बहुत समय पहले (Past)

© गगन दीप