शब-ए-ख़ामोश में
नींद के आग़ोश में
डूबा था मैं जब बेख़बर
मेरे ख़्वाब की रहगुज़र
से कोई हो कर गुज़रा
दबे पॉंव छू कर मुझे
क्या वो तुम थे...?
नींद के आग़ोश में
डूबा था मैं जब बेख़बर
मेरे ख़्वाब की रहगुज़र
से कोई हो कर गुज़रा
दबे पॉंव छू कर मुझे
क्या वो तुम थे...?