ख़्वाहिशों का अमल

नग़मा कभी तुम नज़्म कभी हो, कभी रुबाई कभी ग़ज़ल
संगीत सुनाई दे फ़िज़ा में, लहराए जब तेरा आँचल!

नीमबाज़ आँखें हैं तेरीं, मख़मली से हैं रुख़्सार
लब तेरे नाज़ुक कलियाँ, चेहरा तेरा खिलता कंवल!

आसमां की हूर हो तुम, या हो जन्नत की परी
मन-मंदिर की मूरत हो, तुम ख़्वाहिशों का हो अमल!

© गगन दीप