कोरा आसमां

तुम...
चले भी आओ
अपनी कमनीय, मधुर
चितवन को बिखरा दो
इन बहकी हवाओं में...

मुरझाये वृक्षों पर तुम
फूल खिला दो फिर से
शुष्क वसुंधरा के आँचल में
वसंत की फुहार कर दो...

बता दो इसे, उसे,
उन्हें, सबको
के आज सितारे
नहीं निकलें गगन में
क्योंकि चंद्रमा को
पृथ्वी पर आना है...

पलकों से छू कर तुम
अपने नयनों से छलकती
शीतल किरणों को
छिटक जाने दो
मेरे अंधियारों पर आज
नूर भर जाने दो उनमें...

आसमां कोरा पड़ा था
कब से मेरे मन का
रंगों से भर दो तुम इसको
और लहरा दो
अपनी कुंतलों को
अलकों से कर दो अँधेरा
बाँध लो हमको नज़र में
हो ना पाए फिर सवेरा!

© गगन दीप