मुस्कान

(एक मित्र की बिटिया की स्मृति को समर्पित)

देखा नहीं जिसको हमने
नज़रों से कभी
जाने कब, कैसे वो
प्यारी सी ‘मुस्कान’...

सात समंदर पार से ही
छू गई रूह को हमारी
और बन के ख़ुशबू
हमारे दिल में उतर गई!

परी थी शायद वो कोई
उस जहान की
उतरी थी जो आँगन में
ऐ दोस्त, तुम्हारे घर के...

कुछ पल बिताने आई थी
हम सब के दरमियाँ
और सफ़र कर पूरा
वापस अपने घर गई!

© गगन दीप