कितने सच...

एक ज़माना था जब,
सच सिर्फ़ एक
हुआ करता था
उसके सिवा सब झूठ...

आज के इस दौर में,
झूठ तो है ही नहीं
बस, सच हैं
मगर बहुत सारे...

एक सच मेरा है,
एक है तेरा
एक सच इसका है
और एक है उसका...

इतने ढेर सारे सच,
झूठ का जामा पहन
मुख़्तलिफ़ रंगों में
लिपट कर खो गए...

सच तो ये है मगर
के सच बयाँ करने वाले
अब दुनिया में ना रहे,
वो कब के फ़ना हो गए...

© गगन दीप