मुस्कान

(एक मित्र की बिटिया की स्मृति को समर्पित)

देखा नहीं जिसको हमने
नज़रों से कभी
जाने कब, कैसे वो
प्यारी सी ‘मुस्कान’...

कितने सच...

एक ज़माना था जब,
सच सिर्फ़ एक
हुआ करता था
उसके सिवा सब झूठ...