तुम

तुम औरों की सब सुनती हो
फिर उनका मर्म समझ कर
जीने का अंदाज़
उन्हें सिखलाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने दिल की बात
किसे बतलाती हो।

दिल में क्या कुछ है तुम्हारे
पढ़ा नहीं जिसे कभी किसी ने
फिर भी मन की आँखों से तुम
दूसरों के दर्द देख पाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने दिल के दर्द
किसे दिखलाती हो।

ग़ैरों के ख़्वाब टूटें तो
उन टूटे ख़्वाबों के पूरा
होने की उनको तुम
उम्मीद नयी बंधाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने टूटे ख़्वाबों के
कतरे कहाँ छुपाती हो।

ग़मज़दा लोगों के दिल में
दीप जलाती हो ख़ुशी के
होठों पे तुम उनके हंसी
और मुस्कान खिलाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम किस बात पे हंसती और
किस पे खिलखिलाती हो।

© गगन दीप