ज़िंदगी

सोचा था आसमां को
तराशेंगे हम कभी...
एक मुश्त आसमां को भी
तरसा दिया हमें।

बस एक शक्ल, एक नाम
और एक अधूरा ख़्वाब...
इसके सिवा ऐ ज़िंदगी
तूने क्या दिया हमें।

© गगन दीप