ख़्वाब की रहगुज़र

शब-ए-ख़ामोश में
नींद के आग़ोश में
डूबा था मैं जब बेख़बर
मेरे ख़्वाब की रहगुज़र
से कोई हो कर गुज़रा
दबे पॉंव छू कर मुझे
क्या वो तुम थे...?

माँ का आँचल

कितना सुकूं है
माँ के मुलायम आँचल में
जिसमें सिमट कर
हर बच्चे की आँखों में
एक नूर चमकने लगता है
और होठों पे एक मीठी सी
मुस्कान थिरकने लगती है!

© गगन दीप

ख़्वाहिशों का अमल

नग़मा कभी तुम नज़्म कभी हो, कभी रुबाई कभी ग़ज़ल
संगीत सुनाई दे फ़िज़ा में, लहराए जब तेरा आँचल!

कोरा आसमां

तुम...
चले भी आओ
अपनी कमनीय, मधुर
चितवन को बिखरा दो
इन बहकी हवाओं में...

मुस्कान

(एक मित्र की बिटिया की स्मृति को समर्पित)

देखा नहीं जिसको हमने
नज़रों से कभी
जाने कब, कैसे वो
प्यारी सी ‘मुस्कान’...

कितने सच...

एक ज़माना था जब,
सच सिर्फ़ एक
हुआ करता था
उसके सिवा सब झूठ...

तुम

तुम औरों की सब सुनती हो
फिर उनका मर्म समझ कर
जीने का अंदाज़
उन्हें सिखलाती हो,
कभी मुझ से कहो
तुम अपने दिल की बात
किसे बतलाती हो।

ज़िंदगी

सोचा था आसमां को
तराशेंगे हम कभी...
एक मुश्त आसमां को भी
तरसा दिया हमें।