रेशा रेशा ख़्वाब

ख्व़ाहिश थी तुमसे रू-ब-रू दो बात कर सकूँ
मुझसे तो जब मिले तुम एक भीड़ में मिले।

सिंदूरी धूप

मेरे हिस्से की धूप को
मांग में तुम अपनी रख लो
कुछ रंग सिंदूरी हो जाए
फिर लौटा देना मुझको
मैं ओढ़ लूंगा तब इसको
अपनी रातों के साए पर।