कभी तो हमसे आ के मिल
ऐ ज़िंदगी
अपनी पुरानी शक्ल
और उस अंदाज़ में
जो छूट गया उस मोड़ पर
जहां बचपन था
मासूम सा अल्हड़पन था
वहां पानी का मटमैला सा
एक टूटा-फूटा जोहड़ था
और उम्मीदों से भरी हुई
काग़ज़ की नावें चलती थीं!
भीड़ थी सफ़र में
साथ मगर कुछ अपने थे
कुछ क़िस्से, कहानियां
कुछ कहकहे, कुछ नग़मे थे
तन्हा नहीं था मैं कभी
जीवन की उस राह में
भूले-बिसरे चेहरे कई
मेरे संग रोते-हंसते थे
कुछ रंग-बिरंगे सपने भी
मेरी पलकों पे बसते थे
बेशक जेबें तब खाली थीं
पर हंसी-ठिठोली से छलकती
हरदम मेरी प्याली थी!
उम्र का वो मरहला
एक पल को भी कभी
मुझसे जुदा ना हो सका
यादों की पिटारी
जब भी खोली मैंने
उन चमकते लम्हों को
माज़ी के दरीचों में
झिलमिलाते देखा है
मैंने चराग़ों की तरह,
आज भी लगता है जैसे
बचपन की मीठी बयार
छू कर मुझको बुला रही है
और बतला रही है
के उम्र तो आगे बढ़ गई
पर दिल अभी वहीं है
ये दिल वहीं कहीं है!
© गगन दीप
Click here to listen to this poem in my voice - इस कविता को मेरी आवाज़ में सुनने के लिए यहां क्लिक करें
ऐ ज़िंदगी
अपनी पुरानी शक्ल
और उस अंदाज़ में
जो छूट गया उस मोड़ पर
जहां बचपन था
मासूम सा अल्हड़पन था
वहां पानी का मटमैला सा
एक टूटा-फूटा जोहड़ था
और उम्मीदों से भरी हुई
काग़ज़ की नावें चलती थीं!
भीड़ थी सफ़र में
साथ मगर कुछ अपने थे
कुछ क़िस्से, कहानियां
कुछ कहकहे, कुछ नग़मे थे
तन्हा नहीं था मैं कभी
जीवन की उस राह में
भूले-बिसरे चेहरे कई
मेरे संग रोते-हंसते थे
कुछ रंग-बिरंगे सपने भी
मेरी पलकों पे बसते थे
बेशक जेबें तब खाली थीं
पर हंसी-ठिठोली से छलकती
हरदम मेरी प्याली थी!
उम्र का वो मरहला
एक पल को भी कभी
मुझसे जुदा ना हो सका
यादों की पिटारी
जब भी खोली मैंने
उन चमकते लम्हों को
माज़ी के दरीचों में
झिलमिलाते देखा है
मैंने चराग़ों की तरह,
आज भी लगता है जैसे
बचपन की मीठी बयार
छू कर मुझको बुला रही है
और बतला रही है
के उम्र तो आगे बढ़ गई
पर दिल अभी वहीं है
ये दिल वहीं कहीं है!
© गगन दीप
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