तय किए थे जिन पर
उम्र के मरहले कई
ग़र्द उन्हीं राहों की
जम गई है माज़ी के
पीले पड़े दरीचों पे!
वक़्त की तहों के नीचे
दफ़्न है शायद आज भी
मेरी एक तस्वीर पुरानी
धूल में लिपटी हुई!
वही है भूली-बिसरी
आख़िरी निशानी वाहिद
मेरी शख़्सियत की
और मेरी पहचान है!
वरना मुझको याद नहीं
इन उम्र से लंबी राहों पर
छूट गया कब और कहाँ
मुझ से मेरा हाथ!
*माज़ी = अतीत (Past)
*दरीचा = खिड़की, झरोखा (Window)
*वाहिद = इकलौती (Singular, Unique)
© गगन दीप
उम्र के मरहले कई
ग़र्द उन्हीं राहों की
जम गई है माज़ी के
पीले पड़े दरीचों पे!
वक़्त की तहों के नीचे
दफ़्न है शायद आज भी
मेरी एक तस्वीर पुरानी
धूल में लिपटी हुई!
वही है भूली-बिसरी
आख़िरी निशानी वाहिद
मेरी शख़्सियत की
और मेरी पहचान है!
वरना मुझको याद नहीं
इन उम्र से लंबी राहों पर
छूट गया कब और कहाँ
मुझ से मेरा हाथ!
*माज़ी = अतीत (Past)
*दरीचा = खिड़की, झरोखा (Window)
*वाहिद = इकलौती (Singular, Unique)
© गगन दीप